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धर्मवीर भारती —एक संस्मरण

Madhupnath jha
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हिंदी के साहित्यकारों में धर्मवीर भारती को अग्रणी कहा जाय तो अतिश्यक्ति नहीं होगी | 25 दिसंबर i926 को पैदा हुए धर्मवीर भारती ने गुनाहों के देवता नाम का उपन्यास तब लिखा था जब वह विश्वविद्यालय के ही छात्र थे | उनकी भावुकता ने युवा वर्ग को इस कदर प्रभावित किया कि उनकी यह कृति भगवतीचरण वर्मा कृत चित्रलेखा के बाद सबसे ज्यादा छपने और बिकने वाली कृति बन गई और सच तो यह है कि आज भी उसकी मांग कम नहीं हुई है | इसमें कोई संदेह नहीं है कि उन्होंने लेखन और सम्पादन को एक नया आयाम दिया |
4 सितम्बर 1997  को धर्मवीर भारती का निधन हो गया मगर इस दौरान धर्मयुग पत्रिका के सम्पादन में आई मार्ग में पड़ने वाली सभी अवरोधों को पराजित करते हुए उन्होंने इसे हिंदी की सर्वाधिक लोकप्रिय पत्रिका बनाने में सफलता प्राप्त की बल्कि प्रसार संख्या की दृष्टि से इलस्ट्रेड वीकली को भी पीछे छोड़ दिया | प्रारम्भ में उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा परन्तु विजय अंततः उन्ही की हुई | इसके बावजूद बेनेट कोलमैन के प्रबंधन के अधिकारी उनका समुचित आकलन नहीं कर सके | इलस्ट्रेड वीकली को साप्ताहिक के स्थान पर पाक्षिक बनाने की योजना जब बनी तब भारती जी से भी कहा गया कि वो भी धर्मयुग को -पाक्षिक रूप प्रदान करने के लिए तैयार हो जाएँ जिसे भारती को स्वीकार नहीं था | वीकली का रूप परिवर्तन उसकी गिरती लोकप्रियता को देखते हुए किया जा रहा था जबकि धर्मयुग के साथ ऐसी कोई बात नहीं थी बल्कि यह नयी ऊँचाइयों को स्पर्श कर रहा था और इसके पाठकों की संख्या में दिनानुदिन वृद्धि होती जा रही थी | भारत के अतिरिक्त विदेशों में भी इसका प्रसारण चरम पर था | जब भारती ने ऐसी अवस्था देखी कि धर्मयुग को पाक्षिक बनाने पर प्रबंधन तुल ही गया है तो उन्होंने अपने को धर्मयुग से सम्बन्ध तोड़ लेना ही बेहतर समझा और इस प्रतिष्ठा सम्पन्न पद से इस्तीफा दे दिया |
बेनेट एंड कोलमैन प्रबंधन के इस व्यवहार से जो विवेकहीन था भारती आजीवन दुखी रहे | अपने खून पसीने से सींच कर पुष्पित और पल्लवित करने वाले पत्रिका को पाक्षिक रूप देना उनके लिए वैसा ही था जैसे कोई अपने निरंतर विकसित होने वाले पुत्र के पैरों में लोहे के जूते पहना दे | उन्होंने बड़ी मेहनत की थी धर्मयुग की जड़ो को मजबूत बनाने के लिए और उन्हें भान भी हो गया था कि पाक्षिक करने का मुद्दा अपने आप में अंतिम नहीं है क्योंकि पाक्षिक के बाद यह मासिक होगा और फिर कुछ ही दिनों के बाद इसका प्रकाशन बंद कर देने की घोषणा कर दी जायेगी और इस स्तिथि में उन्हें अपना पद छोड़ने के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प नहीं बचेगा | अतः इसके पहले की उन्हें सेवा मुक्ति कि कोई नोटिस मिलती वो खुद ही धर्मयुग के रास्ते से हटना श्रेयस्कर समझा और बगैर किसी शोर शराबे के अपने द्वारा सिंचित पुष्पित पल्लवित धर्मयुग रुपी बगीचे से बाहर निकल आये |

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